ishwar_chandra_vidyasagar

ईश्वर चंद्र विद्यासागर

व्यक्तित्व एवं कृतित्व

[जन्म 1820 – निधन 1891]

नैतिक मूल्यों के संरक्षक शिक्षाविद् विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके ही भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है। उन्होंने देशी भाषा (वर्नाक्युलर एजुकेशन) और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ ही कलकत्ता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना भी की। उन्होंने इन स्कूलों को चलाने में आने वाले खर्च का बीड़ा उठाया और अपनी बंगाली में लिखी गई किताबों, जिन्हें विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए ही लिखा गया था, की बिक्री से फंड उगाहा। ये किताबें हमेशा बच्चों के लिए खास रही हैं जो शताब्दी या उससे ज्यादा समय तक पढ़ी जा रही हैं।

जब वे कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज के प्रिंसिपल थे तब उन्होंने इसे सभी जाति के छात्रों के लिए खोल दिया। ये उनके अनवरत प्रचार का ही नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून, 1856 आखिरकार पारित हो सका। उन्होंने इसे अपने जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा के खिलाफ भी संघर्ष छेड़ा।

उनके समझौता न करने वाले सिद्धांत, एक योद्धा जैसा जीवन और सहृदयता ने उन्हें अपने समय की बंगाल की एक प्रसिद्ध हस्ती में बना दिया था।

साभार: इंडियन लिबरल ग्रुप