देश का पहला उदारवादी हिंदी पोर्टल आज़ादी.मी लाँन्च

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आज़ादी की 62वीं वर्षगांठ पर एशिया के शीर्ष आठवें थिंक टैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी ने शुक्रवार 14 अगस्त को उदारवादी सोच रखने वाले लोगों के लिए एक पोर्टल 'आज़ादी.मी' लांच किया।

इस पोर्टल का उद्देश्य लोगों को जीवन के हर क्षेत्र में उदारवादी विचारों के प्रति जागरूक करना है।

इस मौके पर जाने माने विद्वान गुरुचरण दास की अध्यक्षता में दिल्ली के एसोचैम हाउस में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में समाचार पत्र दैनिक भास्कर के समूह संपादक श्रवण गर्ग और नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक वेदप्रताप वैदिक ने आज़ादी.मी के बारे में अपने विचार रखे। इन दोनों विद्वानों ने सीसीएस के इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि सम्पूर्ण आजादी की दिशा में यह एक अभिनव प्रयोग है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष गुरुचरण दास ने कहा कि देश ने वर्ष 1991 में उदारीकरण के साथ वास्तविक आजादी की शुरुआत की लेकिन हमें अभी इस दिशा में काफी आगे जाना है। जब तक शासन प्रणाली नही सुधरेगी, भारत में समृद्धि फैलेगी लेकिन खुशहाली नहीं।

इस मौके पर वैदिक ने कहा, ''इस पहल से एक बात साफ हो जाती है कि हिंदी सबकी जरूरत बनती जा रही है और इस दिशा में देशी व विदेशी संस्थाएं सामने आने लगी है।'' उन्होंने कहा कि अगर किसी को भी देश की आम जनता तक अपनी बात पहुंचानी है तो हिंदी उसके लिए एक सशक्त माध्यम है। अगर आज़ादी.मी लोगों को अपने बारे में सोचने के लिये मज़बूर कर देगा तो यह अपने आप में एक बहुत बडी उपलब्धि होगी।

पोर्टल के बारे में अपने विचार रखते हुए गर्ग ने कहा कि क्षेत्रीय भाषा के अखबारों ने जो काम बहुत पहले छोड़ दिया था उस काम को आज सीसीएस ने शुरू किया है। उन्होंने कहा कि आज लोग अपने हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर होते जा रहे हैं और ऐसे में हम अपनी आजादी को कहीं न कहीं गवां रहे है। उन्होंने कहा कि हमें अग्रेजों से आजादी मिले हुए 62 वर्ष हो गए लेकिन सही मायने में आजादी के लिए हमे एक बार फिर दूसरी लड़ाई की शुरुआत करने की जरूरत है।

इस अवसर पर सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के अध्यक्ष पार्थ जे. शाह ने कहा, "हमें 1947 में राजनैतिक आज़ादी मिल गयी थी, लेकिन आर्थिक एवं व्यक्तिगत आज़ादी प्राप्त करने के लिये अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। आज़ादी.मी विश्व के बेहतरीन उदारवादी विचारों को दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र के सामने लाने का एक प्रयास है। हमें स्वतंत्रता से संपूर्ण आज़ादी की ओर जरूर बढना चाहिये।"