कभी-कभी मैं खुद से पूछता हूं कि मुझे एक किलो आलू के 12 रुपये क्यों चुकाने चाहिए, जबकि किसानों को इसमें से सिर्फ तीन या चार रुपये ही मिलते हैं? आलू लंबी यात्रा करके मुझ तक पहुंचते हैं। किसान से मंडी और वहां से दुकानदार की लंबी श्रृंखला है। वितरण श्रृंखला के प्रत्येक चरण में व्यापारी मेरे 12 रुपयों का कुछ हिस्सा अपने पास रख लेते हैं। किसानों को जो मिलता है और ग्राहक जो भुगतान करते हैं उसमें 8-9 रुपयों का अंतर बहुत बड़ा है। अध्ययनों से पता चलता है कि शेष विश्व के मुकाबले भारत में यह अंतर सबसे अधिक इसलिए है, क्योंकि यहां बिचौलियों की संख्या सबसे अधिक है। अमेरिकी किसानों को उपभोक्ता मूल्य का लगभग आधा मिल जाता है। मेरे मामले में अमेरिकी किसान को छह रुपये प्रति किलो मिलते। वस्तुत: यह अंतर माल और मौसम पर भी निर्भर करता है, किंतु कृषि अर्थशास्त्रियों के अध्ययन के अनुसार विकसित देशों में किसान इसलिए अधिक हिस्सा प्राप्त कर पाते हैं, क्योंकि वहां वितरण श्रृंखला अधिक छोटी और कुशल है।