कोविड महामारी कई मायनों में दुनिया को स्थायी रूप से बदल देगी। जाहिर तौर पर, घर से काम करने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी। कार्य स्थल समाप्त तो नहीं होंगे लेकिन घर से होने वाले कार्यों की हिस्सेदारी काफी बढ़ जाएगी।
यह नियोक्ताओं के कार्यालय के लिए स्थान और आवश्यक सहायक सुविधाओं में बचत करेगा। इससे कर्मचारियों के पैसे, समय और कार्य स्थल पर आने जाने में लगने वाले समय में भी बचत होगी। हर मुद्दे पर होने वाली मीटिंग की जरूरतें
आंदोलन कर रहे किसानों की छवि संतों अथवा पापियों के रूप में गढ़ी जा सकती है। 1960 के दशक में जब देश भुखमरी की समस्या से जूझ रहा था तब उन्होंने हरित क्रांति की अगुवाई करके न केवल भारत को खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि एक निर्यातक देश के तौर पर भी स्थापित किया। इसके लिए उन्हें नायक कहा जाना बिल्कुल उचित था।
लेकिन कम वर्षा वाले राज्य में चावल जैसे अत्यधिक पानी की जरूरत वाले फसलों को उगा कर पंजाब के किसानों ने भू जल
गरीबी को खत्म करने के अभी तक सुने गए प्रस्तावों में सबसे आसान एक एनजीओ में काम करने वाले एक दोस्त की ओर से आया। क्यों न हम न्यूनतम वेतन को इतना बढ़ा दें कि सभी लोग गरीबी की रेखा से ऊपर आ जाएं? यह कितना आसान लगता है मनोहारी और दर्दरहित। अफसोस, यह नाकाम रहेगा क्योंकि हमारे यहां एक ऐसा कानून है जिसका परिणाम अनपेक्षित है।
अपने युवावस्था के दिनों में मैं इस खिसिया देने वाले लेकिन निष्ठुर कानून से अनजान था। उन दिनों तो मैं गरीबी को हल करने के तुरत-फुरत सलोने उपायों के सपने बुन लिया करता था। यह बात मेरी समझ में ही नहीं आई
स्वामीनाथन एस. ए. अय्यर
इस पेज पर स्वामीनाथन एस. ए. अय्यर के लेख दिये गये हैं। ये लेख शीर्ष बिजनेस अखबारों में स्वामीनॉमिक्स कॉलम में प्रकाशित होते हैं।
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कोविड महामारी कई मायनों में दुनिया को स्थायी रूप से बदल देगी। जाहिर तौर पर, घर से काम करने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी। कार्य स्थल समाप्त तो नहीं होंगे लेकिन घर से होने वाले कार्यों की हिस्सेदारी काफी बढ़ जाएगी।
यह नियोक्ताओं के कार्यालय के लिए स्थान और आवश्यक सहायक सुविधाओं में बचत करेगा। इससे कर्मचारियों के पैसे, समय और कार्य स्थल पर आने जाने में लगने वाले समय में भी बचत होगी। हर मुद्दे पर होने वाली मीटिंग की जरूरतें
आंदोलन कर रहे किसानों की छवि संतों अथवा पापियों के रूप में गढ़ी जा सकती है। 1960 के दशक में जब देश भुखमरी की समस्या से जूझ रहा था तब उन्होंने हरित क्रांति की अगुवाई करके न केवल भारत को खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि एक निर्यातक देश के तौर पर भी स्थापित किया। इसके लिए उन्हें नायक कहा जाना बिल्कुल उचित था।
लेकिन कम वर्षा वाले राज्य में चावल जैसे अत्यधिक पानी की जरूरत वाले फसलों को उगा कर पंजाब के किसानों ने भू जल
गरीबी को खत्म करने के अभी तक सुने गए प्रस्तावों में सबसे आसान एक एनजीओ में काम करने वाले एक दोस्त की ओर से आया। क्यों न हम न्यूनतम वेतन को इतना बढ़ा दें कि सभी लोग गरीबी की रेखा से ऊपर आ जाएं? यह कितना आसान लगता है मनोहारी और दर्दरहित। अफसोस, यह नाकाम रहेगा क्योंकि हमारे यहां एक ऐसा कानून है जिसका परिणाम अनपेक्षित है।
अपने युवावस्था के दिनों में मैं इस खिसिया देने वाले लेकिन निष्ठुर कानून से अनजान था। उन दिनों तो मैं गरीबी को हल करने के तुरत-फुरत सलोने उपायों के सपने बुन लिया करता था। यह बात मेरी समझ में ही नहीं आई
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