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नई दिल्ली, भारत – सेंटर फार सिविल सोसायटी द्वारा आज यहां जारी विश्व आर्थिक स्वतंत्रता : वार्षिक रपट 2012 में भारत 144 देशों में 111 वे स्थान पर रहा है। भारत पिछले वर्ष भी 103 वे स्थान पर था। भारत की कुल रेटिंग 6.26 रही इस तरह से वह चीन,बांग्लादेश,तंजानिया और नेपाल से पीछे रहा।
दुनियाभर में विश्व आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में थोड़ी सी वृद्धि हुई और वह 2010 में 6.83 रही।2009 में वह तीन दशक में सबसे कम स्तर पर यानी 6.79 पर पहुंच गया था।
सेंटर फार सिविल सोसायटी के अध्यक्ष पार्थ शाह ने कहा कि अमेरिकी और यूरोपीय


उत्तर प्रदेश में आगामी चुनाव के माहौल को देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी अस्पताल में आपातकालीन ऑपरेशन चल रहा हो। दोनों में ही दिमाग में तरह-तरह के ख्यालात आते है। विश्व आर्थिक व्यवस्था, जिसे पूंजीवाद कहा जाता है, बड़े संकट से जूझ रही है, किंतु उत्तर प्रदेश के लोगों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। उन्हे तो बस इससे मतलब है कि लखनऊ में उन पर कौन शासन करेगा। अमेरिका और यूरोप, दोनों की माली हालत खस्ता है। यहां तक कि भारत की अर्थव्यवस्था भी धीमी पड़ गई है। रिटेल में एफडीआइ को लेकर हुई हालिया बहस से साफ हो गया है कि हम बाजार को लेकर अभी भी शंकालु है। भारत में यह मानने वालों की संख्या

आरक्षण का मसला एक भावनात्मक मुद्दा है। जब भी यह भड़कता है तो उसकी आग ठंडी होने में काफी समय लगता है और तब तक पार्टियां एकाध चुनावी रोटी इस पर सेंक लेती हैं। इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि इस समय सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने का मुद्दा उठा है। लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। ऐसे में संसद में इस मुद्दे पर विवाद चलते रहने से कई पार्टियों को फायदा होने वाला है।
इस मुद्दे को तूल देने और राजनैतिक फायदा उठाने में मुलायम सिंह यादव और मायावती सर्वाधिक मुखर हैं। दोनों ने
- Research


देश में जैसे राजनैतिक गतिरोध हैं, वैसे ही आर्थिक गतिरोध भी हैं। सबकुछ ठहरा हुआ हैं। सरकार में नीतिगित लकवा है। संसद के गुजरे सत्र में आर्थिक सुधार के बिल पास नहीं हो पाए। सुधारों पर आम राय नहीं है। न सत्तारूढ यूपीए में एक राय है और न विपक्ष मददगार हैं। पी चिदंबरम ने वित्त मंत्रालय संभालने के बाद साहस दिखाया।
प्रणब मुकर्जी ने वित्त मंत्रालय में रहते हुए जितने उलटे और गलत मैसेज देने वाले काम किए थे, उन्हें चिदंबरम ने उलटा है। देश-दुनिया के निवेशकों को चिदंबरम ने आश्वस्त किया है। पिछली तारीख से टैक्स थोंपने और गार के फैसले मुल्तवी


इस दिलचस्प विषय पर बात करने का मौका देने के लिए आपका धन्यवाद। मैं अपना ज्यादातर समय विदेशों में गुजारता हूं।और जब मैं चीन या रूस या ब्राजील या अफगानिस्तान मे या तजाकिस्तान या केन्या में होता हूं तब में अकसर सीमित सरकार के पक्ष में दलील देता हूं जिसे मैं असीमित सरकार की तुलना में महत्वपूर्ण प्रगति मानता हूं। लेकिन यहां हम केवल तात्कालिक मुद्दों पर ही नहीं तो वरन हमारे आदर्शों पर भी चर्चा कर सकते हैं।
हम इस मुद्दे की स्पष्ट परिभाषा से शुरू करें। अराजकता का मतलब होता है शासक विहीन या बिना शासक के। इसका अर्थ अव्यवस्था नहीं है। यह


द फाउंटनहेड १९४३ में अमेरिकी उपन्यासकार आयन रैंड द्वारा लिखित एक अंग्रेज़ी उपन्यास है जो कुछ समीक्षकों के अनुसार विश्व के सबसे प्रभावशाली उपन्यासों में से एक है। मई २००८ तक दुनिया भर में इसकी ६५ लाख से ज़्यादा प्रतियाँ बिक चुकी थीं और अभी भी हर वर्ष इसकी औसतन १ लाख प्रतियाँ बिकती हैं।दर्शनशास्त्र के नज़रिए से यह किताब एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्तिवादी कृति मानी जाती है जिसमें उस विचारधारा की तटस्थवाद (objectivism, ऑब्जेक्टिविज़्म) शाखा की बुनियाद रखी गई।
अंग्रेज़ी में 'फाउंटनहेड' का अर्थ 'मूल स्रोत' होता है। किसी भी पाने


देश के अदिवासियों और पर्यावरण के कई हितैषी और सेंटर फार सिविल सोसायटी जैसी कई संस्थाएं लम्बे समय से बांस को घास घोषित किये जाने के लिए अभियान चलाती रहीं है। बांस समर्थको की मांग रही है कि भारतीय वन कानून (1927) को संशोधित किया जाए और कानून की धारा 2(7) में से बांस को पेड़ों की सूची से हटाया जाए. आखिर क्यों बांस को घास की श्रेणी में रखा जाना चाहिए? क्योंकि यह घास की तरह पनपता है, इसकी उत्पादकता बहुत ज्यादा है तथा इसे कई तरह के कामों में इस्तेमाल किया जाता है इसलिए जाहिर तौर पर इसमें बहुत अधिक आर्थिक संपन्नता लाने की क्षमता है। ऐसे में अगर लोगों को बांस उगाने, उसे