मुश्किल है ‘मेक इन इंडिया’ की राह
Published on 14 Oct 2014 - 16:29

बनाने होंगे कई बेंगलूरू
1988 से 2008 के बीच मध्यवर्ग की आमदनी भारत में 50 फीसदी और अमेरिका में 26 फीसदी की दर से बढ़ी। वर्ल्ड बैंक ने दुनिया के मध्यवर्ग पर अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय मिडल क्लास की कमाई अपने अमेरिकी जोड़ीदार के मुकाबले दोगुनी रफ्तार से बढ़ी है। वर्ष 1988 से 2008 के बीच भारत के मध्यवर्ग की आमदनी जहां 50 फीसदी की दर से बढ़ी, वहीं अमेरिका में इस तबके की आय में 26 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट के अनुसार मध्यवर्ग के बूते अंतरराष्ट्रीय कारोबार बढ़ने से भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को सबसे अधिक फायदा हुआ है और इसी कारण चीन की तरह भारत भी कारखानों का देश बनता दिखाई दे रहा है। आज न केवल कंप्यूटर क्षेत्र में बल्कि इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिकल, फार्मास्युटिकल, केमिकल समेत तमाम क्षेत्रों की कंपनियां भारत आकर निर्माण करना चाहती हैं।
निवेशकों को तोहफा
कंपनियों को अगर भारत में अपार संभावना दिखाई दे रही है, तो इसका कारण देश का तेजी से उभरता मध्यवर्ग और उसकी बढ़ती हुई क्रयशक्ति ही है। फिर ‘मेक इन इंडिया’ की संभावना पैदा करने में मोदी सरकार के कुछ हालिया फैसलों का भी बड़ा रोल है। आर्थिक सुधारों और इंफ्रास्ट्रक्चर तथा अन्य क्षेत्रों में उठाए जा रहे उसके कदम निवेश के लिए उत्साह पैदा कर रहे हैं। भारत को कारोबार के अनुकूल देश बनाने के लिए मोदी सरकार ने बीमा तथा रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई की स्वीकृति दी है। इसी तरह श्रम कानूनों को सरल और कारगर बनाने की रूपरेखा भी तैयार की है। सरकार ने श्रम कानूनों में संशोधन के लिए लोकसभा में दो विधेयक पेश किए हैं। इसके तहत महिलाओं को रात की पाली में काम करने के नियमों में ढील देने, ओवर टाइम की सीमा बढ़ाए जाने और गैर-स्नातक इंजीनियरों के लिए प्रशिक्षण देने जैसी व्यवस्था की जाएगी। इसी तरह सरकार ने श्रम और कारोबार क्षेत्र में ‘इंस्पेक्टर राज’ समाप्त करने का संकेत देते हुए इंस्पेक्टरों के विवेकाधीन अधिकार खत्म कर उन्हें ज्यादा जिम्मेदार बनाने की बात भी कही है।
नई सरकार के वैश्विक आर्थिक रिश्ते भी भारत को कारखानों का देश बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। दरअसल, काम संभालने के शुरुआती दिनों में ही नई सरकार ने पड़ोसी मुल्कों के साथ आर्थिक संबंध सुधारने की जो पहल की, उसने भारत का क्षेत्रीय आर्थिक महत्व बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी की छठे ब्रिक्स सम्मेलन में प्रभावी भूमिका, सफल जापान यात्रा और फिर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग की भारत यात्रा के दौरान आर्थिक एवं कारोबारी रिश्तों की नई इबारत लिखी गई। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिका के साथ आर्थिक औद्योगिक विकास की चमकीली संभावनाएं उभरकर सामने आई हैं। इन पहलकदमियों से विदेशी निवेशकों का भारत में विश्वास बढ़ा है।
देश वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है, क्योंकि एक ओर हमारे यहां श्रम सस्ता है, दूसरी ओर हमारे पास स्किल्ड प्रफेशनल्स की की ताकत भी है। वैश्विक शोध अध्ययन संगठन ‘टॉवर्स वॉटसन’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि चीन की तुलना में भारत में श्रम ज्यादा सस्ता है। इस शोध अध्ययन में भारत और चीन में इस समय मिल रही मजदूरी और वेतन की तुलना की गई है और निष्कर्ष निकाला गया है कि भारत इस समय सबसे सस्ते श्रमबल वाला देश बन गया है। निस्संदेह सस्ते एवं प्रशिक्षित श्रमबल के कारण चीन कई वर्षों से आर्थिक विकास के मोर्चे पर दमदार प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन अब इसकी कमी चीन के विकास की चुनौती बन रही है। भारत में बढ़ रही संभावनाओं के मद्देनजर विदेशों में अपनी प्रतिभा का परचम लहराने वाले प्रवासी भारतीय भी बड़ी संख्या में स्वदेश लौट रहे हैं।
लेकिन मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब बनने के रास्ते में कुछ बाधाएं भी हैं। जिस तरह नोकिया ने अपना चेन्नई प्लांट बंद किया, उससे लगता है कि अभी भी देश में प्रशासनिक जवाबदेही नहीं आई है। इसलिए निवेश जुटाना है तो कई मोर्चों पर नीतिगत बदलाव करने होंगे। ‘मेक इन इंडिया’ का सपना साकार करने के लिए सरकार को ऐसी रणनीति पर काम करना होगा, जिसके तहत बेहतर कारोबारी माहौल बने और व्यापार करने की प्रक्रियागत मुश्किलें कम हों। गैरजरूरी कानून जितनी भी जल्दी हो सके, हटाए जाएं। घरेलू मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने की भरपूर कोशिश की जाए। लाइसेंसिंग में ढिलाई दी जाए और जमीन अधिग्रहण कानून में बदलाव किए जाएं। विदेशों में एफडीआई की नीति और निवेश के फायदे का प्रचार-प्रसार किया जाए। तैयार माल के मुकाबले कच्चे माल पर कम आयात शुल्क लगाया जाए। विनिर्माण और निर्यात क्षेत्र को बढ़ाने के लिए जीएसटी लाने में बिल्कुल देर न की जाए।
नए बाजार खोजें
पुराने व्यापारिक साझीदारों के अलावा नए निर्यात बाजारों में भी एक्सपोर्ट बढ़ाने की रणनीति बनानी होगी। कुशल श्रम शक्ति के लिए रणनीतिक प्रयास करने होंगे। भारत को कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करने वाले देश के रूप में अपनी पहचान बनानी होगी। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के रास्तों की अड़चनों को तेजी से हटाना होगा। इन उपायों से भारत भी चीन की तरह दुनिया का नया कारखाना बन सकेगा। इससे देश में रोजगार के अवसर पैदा होंगे और खुशहाली बढ़ेगी।
इन्वेस्टर्स को ध्यान में रखकर नीतियां बनें तो भारत दुनिया का कारखाना बन सकता है
- जयंतीलाल भंडारी
साभारः नवभारत टाइम्स
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