वर्ष 1991 में जब देश अत्यंत बदहाली के दौर से गुजर रहा था, विदेशी कर्ज चुकाने के लिए देश को अपना सोना तक गिरवी रखना पड़ा था, तब आर्थिक सुधार लागू किए गए थे. पिछले बीस वर्षो में गंगा-यमुना में बहुत पानी बह चुका है। इस बीच देश ने बहुत तरक्की की है। देश एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है लेकिन फिर भी कुछ कमियां हैं।
जैसा कि विक्टर ह्यूगो ने कहा है- दुनिया की कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका वक्त आ चुका है- तो मैं सदन से कहता हूं कि आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का उदय भी ऐसा ही एक विचार है। पूरी दुनिया साफ सुन ले। भारत अब जाग चुका है, हमें बढ़ना होगा, जीतना होगा।’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बतौर वित्तमंत्री 24 जुलाई, 1991 को अपने बजट भाषण का समापन जब इन शब्दों के साथ किया तो शायद किसी ने सोचा नहीं होगा कि सोना गिरवी रखने को मजबूर और भुगतान संकट के चलते दिवालियेपन की कगार पर पहुंचा मुल्क 21वीं सदी के उगते सूरज के संग आसमान में विश्व की दूसरी तेजी से उभरती आर्थिक ताकत बनकर छा जाएगा। और जब विकसित और धनाढ्य अर्थव्यवस्थाएं वित्तीय सुनामी से ताश के पत्तों की तरह ढेर होंगी तो वैश्विक अर्थव्यवस्था के चिराग को वह मंदी के थपेड़े से बचाएगा।