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- हम अमीर सरकार वाले गरीब देश के निवासी है
- गरीबी उन्मूलन के लिए लाई जाने वाली सरकारी योजनाएं गैरकानूनी और काला धन बनाने का स्त्रोत होती हैं
- यदि समाजवाद के प्रति हमारी सनक बरकार रहती है तो देश का भविष्य अंधकारमय ही रहेगा
16 जनवरी 1920 को मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) के पारसी परिवार में पैदा हुए पद्मविभूषण नानाभाई अर्देशिर पालखीवाला उर्फ नानी पालखीवाला उदारवादी विचारक, अर्थशास्त्री और उत्कृष्ट कानूनविद्...

देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका, मराठी की पहली कवियित्री और वंचितों की आवाज बुलंद करने वाली सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के पुणे-सतारा मार्ग पर स्थित नैगांव में एक दलित कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। 1840 में मात्र 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ।
सावित्रीबाई का बचपन अनेक चुनौतियों से भरा रहा। उस दौर में...

केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ राजस्थान विधानसभा में तीन कृषि संशोधन विधेयक पारित किए गए हैं जिनका उद्देश्य इन कानूनों के राज्य के किसानों पर असर को निष्प्रभावी करना है। राजस्थान सरकार का कहना है कि इससे किसानों के हितों की रक्षा होगी और उनके लिए न्यूनतम आय सुनिश्चित होगी। लेकिन विधेयकों पर ध्यान देने से पता चलता है कि इसके प्रावधान किसानों की मदद करने की बजाए लंबे समय में उन्हें नुकसान ही पहुंचाएंगे।
संशोधन विधेयक, न्यूनतम...

उदारवादी विचारक फ्रेडरिक बास्तियात की पुण्यतिथि पर विशेषः
फ्रेडरिक बास्तियात का जन्म 30 जून 1801 को फ्रांस के बेयोन में हुआ था और उनका निधन 24 दिसम्बर 1850 को रोम में हुआ था। उनका परिवार एक छोटे से कस्बे मुग्रोन से ताल्लुक रखता था, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकांश हिस्सा गुजारा और जहां पर उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित है। मुग्रोन, बेयोन के उत्तर-पूर्व में एक फ्रांसीसी हिस्से 'लेस लेंडेस' (Les Landes) में स्थित है।...

- सुधारों को आत्मसात करना किसानों के हित में
- तीनों कानूनों को वापस लेने से कम कुछ भी मंजूर नहीं वाला रुख किसानों के लिए नुकसानदायक
कृषि सुधार कानूनों के विरोध में धरने पर बैठे किसानों से सरकार की अबतक की बातचीत की कोशिश बेनतीजा रही है। किसानों को तीनों कानूनों को समाप्त किये जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसान अब अपने आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाने और राजमार्गों को टोल मुक्त...

बहस एक ऐसा उपकरण है जो लोकतंत्र में बुनियादी अधिकारों को सुरक्षित रखने में मददगार साबित होता है। ऐसे ही कई अहम बहसों के माध्यम से लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित करने वाले शख्स थे नानी पालकीवाला। नागरिकों के अधिकारों को अक्षुण्ण बनाने के लिए की पालकीवाला द्वारा की गई बहसों से सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद परिसर तक गुंजायमान रहते थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल लागू किया तो नानी पालकीवाला ने इसका पुरजोर विरोध किया। उनका यह योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। आज इस मशहूर वकील, कर...

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के 142वें जन्मदिन पर विशेषः
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के बीच सरकार के कार्यकलाप के तौर तरीकों पर भेद थे। राजाजी बेबाकी से नेहरू की नीतियों की आलोचना करते थे। एक बार मद्रास के मरीना बीच पर हुई एक जनसभा में नेहरू ने राजाजी पर गुस्से में बोलने और बिना वजह गुस्से से मस्तिष्क के भ्रम का आरोप लगाया और इच्छा जताई कि वे सीधे सीधे...

- संसद में विस्तृत चर्चा की बजाए लाए गए अध्यादेश ने डाला डर का बीज
- पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा किसानों को दिखाए गए सब्ज़बाग की विफलता से डिगा है भरोसा
- भूमि सुधार और निजी सुरक्षा प्रदान करने के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करने का है स्कोप
किसान संगठनों के नेतृत्व में भारी तादाद में किसानों ने पिछले कई दिनों से दिल्ली को घेर रखा है। ये किसान मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में सुधार के प्रयास के तहत...